वेदसार शिव स्तोत्रम्
Vedasaara-Siva-Stotram
Pashunaam Patim Paap-naasham..
With Sanskrit Text, Hindi, English lyrics and meanings
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं, गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम् ।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं, महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥१॥
जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पाप का ध्वंस करनेवाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराज का चर्मपहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूट में श्रीगंगा जी खेल रहीं हैं उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हूँ ॥१॥
महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं, विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम् ।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं, सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥२॥
चन्द्र, सूर्य और अग्नि तीनों जिनके नेत्र हैं उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देव-दुःखदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूति-भूषण, नित्यानन्द स्वरूप, पञ्चमुख भग्वानश्रीमहादेवजी की मैं स्तुति करता हूँ ॥ २ ॥
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं, गवेन्द्राधिरूढं गणातीतरूपम् ।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं, भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ॥३॥
जो कैलाशनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ है॔, बैलपर चढे़ हुऐ हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसार के आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीर पे भस्म लगाये हुऐ है और श्रीपार्वती जी जिनकी अर्धांगिनि हैं, उन पञ्चमुख महादेवजी को मैं भजता हूँ ॥ ३ ॥
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले, महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन् ।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप, प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ॥४॥
हे पार्वतीवल्लभ महादेव ! हे चन्द्रशेखर ! हे त्रिशूलिन ! हे जटाजूटधारिन ! हे विश्वरूप ! एकमात्र आप ही जगत में व्यापक हैं । पूर्णरूप प्रभो ! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये ॥ ४ ॥
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं, निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम् ।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं, तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ॥५॥
जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्रणवद्वारा जानने योग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभु को मैं भजता हूँ ॥ ५ ॥
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा ।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो, न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ॥६॥
जो न पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश हैं, न तन्द्रा हैं, न निद्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं, तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूँ ॥ ६ ॥
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां, शिवं केवलं भासकं भासकानाम् ।
तुरीयं तमः पारमाद्यन्तहीनं, प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ॥७॥
जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं, प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रयसे विलक्षण हैं, अज्ञान से परे हैं, अनादि और अनन्त हैं उन परम-पावन अद्वैत-स्वरूप को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ७ ॥
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते, नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते ।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य, नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥८॥
हे विश्वमूर्ते ! हे विभो ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है, हे चिदानन्दमूर्ते ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है । हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है । वेदवैद्य भगवन ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है ॥ ८ ॥
प्रभो शूलपाणे विभो विश्र्वनाथ, महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र ।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे, त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ॥९॥
हे प्रभो ! हे त्रिशूलपाणे ! हे विभो ! हे विश्वनाथ ! हे महादेव ! हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे त्रिनेत्र ! हे पार्वतीप्राणवल्लभ ! हे शान्त ! हे कामारे ! हे त्रिपुरारे ! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न गणनीय है ॥ ९ ॥
शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे, गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन् ।
काशीपते करुणया जगदेतदेक, स्त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्र्वरोऽसि ॥१०॥
हे शम्भो ! हे महेश्वर ! करूणामय ! हे त्रिशूलिन ! हे गौरीपते ! हे पशुपते ! हे पशुबन्धमोचन ! हे काशीश्वर ! एक तुम्हीं करूणावश इस जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हो; प्रभो ! तुम ही इसके एकमात्र स्वामी हो ॥ १० ॥
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे, त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्र्वनाथ ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश, लिङ्गात्मकं हर चराचरविश्र्वरूपिन् ॥ ११ ॥
हे देव ! हे शंकर ! हे कन्दर्पदलन ! हे शिव ! हे विश्वनाथ ! हे ईश्वर ! हे हर ! हे चराचरजगद्रूप प्रभो ! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत तुम्हीसे उत्पन्न होता है, तुम्हीमें स्थित रहता है और तुम्हीमें लय हो जाता है ॥ ११ ॥
इति श्रीमच्छङकराचायॆ वेदसारशिवस्तवः सम्पूर्णः।
हिनदी अनुवाद गीता गोरखपुर प्रेस पुस्तक से ॥
Vedasaara-Siva-Stotram
Pashunaam Patim Paapa-naasham..
Shiva Stotra by Adi Sri Shankaracharya
Pashunaam Patim Paapa-naasham Paresham,
Gajendrasya Krittim Vasaanam Varenayam;
Jataa Jutamadhye Sphurat Gangavaarim,
Mahādevam-ekam Smaraami Smaraarim (1).
The Lord of all beings, The destroyer of sins,
The One who is clad in elephant hide,
The One who has the Ganges braided in his matted hair-locks,
I meditate on that Mahādeva, one and only Supreme God.
Mahesham, Suresham, Suraaraathinaasham,
Vibhum, Vishwanātham, Vibhutyanga Bhoosham;
Virupaaksham-indvarka Vahni Trinetram,
Sadanandam-eede Prabhu Pancha Vaktram (2).
The One who is the Greatest, The God of the Gods,
The slayer of the enemies of Gods, The scholar, the Lord, smeared in ashes,
The One with Sun, Moon and Fire as his eyes,
I offer my obeisance to that Lord with five faces (Prabhu Panca-Vaktram).
Girisham Ganesham Gale Neela-varnam,
Gavendraadhi Roodham Ganaa-tita-rupam;
Bhavam Bhaasvaram Bhasmanaa Bhooshitaangam,
Bhavāni-Kalatram Bhaje Pancha-vakram (3).
He, Who is the Lord of the mount Kailāsh, the Master of his henchmen,
Who is astride of the bull, Who has infinite forms, Who is the root cause of this world,
the manifestation of light, Who has his body smeared with ash,
Whose wife is Goddess Pāravati, I bow to that five faced Lord Mahādeva.
Shivākaanta Shambho, Shashaan-kaardha Moule,
Mahesaana-Shulin Jataa-Jutadhaarin,
Tvameko Jagad-vyaapako Vishwaroopa,
Praseeda, Praseeda Prabho Poorna-roopa (4).
The One with the Divine Mother, The One with most pleasant countenance,
The One bearing crescent moon and carrying trident,
The one with matted hair-locks, and the Omnipresent,
All glories to that One Who is Complete.
Paraatmaanam-ekam, Jagat-Beejam-aadhyam,
Niriham Niraakaaram-Omkāra Vaidhyam;
Yatho Jaayathe Paalyathe Yena Vishvam,
Tameesham Bhaje Leeyate Yatra Vishwam (5).
The Supreme Soul, the seed of all creation,
Free of ego and form, The One knowable through the Primordial sound,
The creator, preserver and destroyer, I offer my obesiances to the God.
Na Bhoomir Na Chaapo Na Vahanir Na Vaayur,
Na Cha-aakaasham-aaste Na Tandraa Na Nidraa;
Na Greeshmo Na Sheetam Na Desho Na Vesho,
Na Yas-yaasti Murtis-Trimurthim Tameede (6).
The One Who is beyond earth, water, fire, air, ether
The one unaffected by stupor, sleep, heat, cold
The one Who is beyond a place and form,
Praise the One with three aspects.
Ajam Shaashvatam Kaaranam Kaaranaa-naam,
Shivam Kevalam Bhaasakam Bhaasakaa-naam;
Turiyam Tamaha Paaram-aadhyanta-Heenam,
Prapadhye Param Paavanam Dvaita-heenam (7).
The One is beyond birth, The One Who is permanent, the cause of the causes,
The One Who illuminates the whole Universe,
The one beyond the three states, without beginning and end,
Destroyer of ignorance and struggle, the one beyond all duality,
I offer my obeisance to Him, the most pure.
Namaste Namaste, Vibho Vishwamurte,
Namaste, Namaste Chidaananda Murte;
Namaste, Namaste Tapo Yoga-gamya,
Namaste, Namaste Shruti Gyaana-Gamya (8).
Salutations and prostrations to the Supreme scholar, the chief of all,
Obeisance to the One Who is an embodiment of existence and bliss,
All glories to the One knowable through penance and yoga,
All glories to the One unknowable through the inner knowledge of the Vedās.
Prabho Shulapaane Vibho Vishwanaatha,
Mahādeva Shambho Mahesha Trinetra;
Śivākānta Shaanta Smaraare Puraare,
Tvadanyo Varenyo Na Maanyo Na Ganyah (9).
Shambho Mahesha Karunaamaya Shulapaane,
Gauri-pate Pashu-pate Pashu-paasha-naashin;
Kāshi-pate Karunayaa Jagadetadeka,
Stvam Hansi Paasi Vida-dhaasi Maheshwaro’si (10).
Tvatto Jagad-bhavati Deva Bhava Smaraare
Tvayyeva Tishthati Jaganmruda Vishwanaatha;
Tvayyeva Gacchati Layam Jagadeta-disha,
Lingaatmakam Hara Charaa-chara-Vishwa-rupin (11).
Ishwar Maharaj – Pandit Ishwar Sharma
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